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लूका 10:19 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

पश्यत सर्पान् वृश्चिकान् रिपोः सर्व्वपराक्रमांश्च पदतलै र्दलयितुं युष्मभ्यं शक्तिं ददामि तस्माद् युष्माकं कापि हानि र्न भविष्यति।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

পশ্যত সৰ্পান্ ৱৃশ্চিকান্ ৰিপোঃ সৰ্ৱ্ৱপৰাক্ৰমাংশ্চ পদতলৈ ৰ্দলযিতুং যুষ্মভ্যং শক্তিং দদামি তস্মাদ্ যুষ্মাকং কাপি হানি ৰ্ন ভৱিষ্যতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

পশ্যত সর্পান্ ৱৃশ্চিকান্ রিপোঃ সর্ৱ্ৱপরাক্রমাংশ্চ পদতলৈ র্দলযিতুং যুষ্মভ্যং শক্তিং দদামি তস্মাদ্ যুষ্মাকং কাপি হানি র্ন ভৱিষ্যতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

ပၑျတ သရ္ပာန် ဝၖၑ္စိကာန် ရိပေါး သရွွပရာကြမာံၑ္စ ပဒတလဲ ရ္ဒလယိတုံ ယုၐ္မဘျံ ၑက္တိံ ဒဒါမိ တသ္မာဒ် ယုၐ္မာကံ ကာပိ ဟာနိ ရ္န ဘဝိၐျတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

pazyata sarpAn vRzcikAn ripOH sarvvaparAkramAMzca padatalai rdalayituM yuSmabhyaM zaktiM dadAmi tasmAd yuSmAkaM kApi hAni rna bhaviSyati|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

પશ્યત સર્પાન્ વૃશ્ચિકાન્ રિપોઃ સર્વ્વપરાક્રમાંશ્ચ પદતલૈ ર્દલયિતું યુષ્મભ્યં શક્તિં દદામિ તસ્માદ્ યુષ્માકં કાપિ હાનિ ર્ન ભવિષ્યતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

pazyata sarpAn vRzcikAn ripoH sarvvaparAkramAMzca padatalai rdalayituM yuSmabhyaM zaktiM dadAmi tasmAd yuSmAkaM kApi hAni rna bhaviSyati|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



लूका 10:19
12 अन्तरसन्दर्भाः  

अपरं तैः सर्पेषु धृतेषु प्राणनाशकवस्तुनि पीते च तेषां कापि क्षति र्न भविष्यति; रोगिणां गात्रेषु करार्पिते तेऽरोगा भविष्यन्ति च।


वा अण्डे याचिते तस्मै वृश्चिकं ददाति युष्माकं मध्ये क एतादृशः पितास्ते?


किन्तु स हस्तं विधुन्वन् तं सर्पम् अग्निमध्ये निक्षिप्य कामपि पीडां नाप्तवान्।


अधिकन्तु शान्तिदायक ईश्वरः शैतानम् अविलम्बं युष्माकं पदानाम् अधो मर्द्दिष्यति। अस्माकं प्रभु र्यीशुख्रीष्टो युष्मासु प्रसादं क्रियात्। इति।


यदि केचित् तौ हिंसितुं चेष्टन्ते तर्हि तयो र्वदनाभ्याम् अग्नि र्निर्गत्य तयोः शत्रून् भस्मीकरिष्यति। यः कश्चित् तौ हिंसितुं चेष्टते तेनैवमेव विनष्टव्यं।