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योहन 7:7 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

जगतो लोका युष्मान् ऋतीयितुं न शक्रुवन्ति किन्तु मामेव ऋतीयन्ते यतस्तेषां कर्माणि दुष्टानि तत्र साक्ष्यमिदम् अहं ददामि।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

জগতো লোকা যুষ্মান্ ঋতীযিতুং ন শক্ৰুৱন্তি কিন্তু মামেৱ ঋতীযন্তে যতস্তেষাং কৰ্মাণি দুষ্টানি তত্ৰ সাক্ষ্যমিদম্ অহং দদামি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

জগতো লোকা যুষ্মান্ ঋতীযিতুং ন শক্রুৱন্তি কিন্তু মামেৱ ঋতীযন্তে যতস্তেষাং কর্মাণি দুষ্টানি তত্র সাক্ষ্যমিদম্ অহং দদামি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

ဇဂတော လောကာ ယုၐ္မာန် ၒတီယိတုံ န ၑကြုဝန္တိ ကိန္တု မာမေဝ ၒတီယန္တေ ယတသ္တေၐာံ ကရ္မာဏိ ဒုၐ္ဋာနိ တတြ သာက္ၐျမိဒမ် အဟံ ဒဒါမိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

jagatO lOkA yuSmAn RtIyituM na zakruvanti kintu mAmEva RtIyantE yatastESAM karmANi duSTAni tatra sAkSyamidam ahaM dadAmi|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

જગતો લોકા યુષ્માન્ ઋતીયિતું ન શક્રુવન્તિ કિન્તુ મામેવ ઋતીયન્તે યતસ્તેષાં કર્માણિ દુષ્ટાનિ તત્ર સાક્ષ્યમિદમ્ અહં દદામિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

jagato lokA yuSmAn RtIyituM na zakruvanti kintu mAmeva RtIyante yatasteSAM karmANi duSTAni tatra sAkSyamidam ahaM dadAmi|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



योहन 7:7
27 अन्तरसन्दर्भाः  

सर्व्वैलाकै र्युष्माकं सुख्यातौ कृतायां युष्माकं दुर्गति र्भविष्यति युष्माकं पूर्व्वपुरुषा मृषाभविष्यद्वादिनः प्रति तद्वत् कृतवन्तः।


तवोपदेशं तेभ्योऽददां जगता सह यथा मम सम्बन्धो नास्ति तथा जजता सह तेषामपि सम्बन्धाभावाज् जगतो लोकास्तान् ऋतीयन्ते।


जगतो मध्ये ज्योतिः प्राकाशत किन्तु मनुष्याणां कर्म्मणां दृष्टत्वात् ते ज्योतिषोपि तिमिरे प्रीयन्ते एतदेव दण्डस्य कारणां भवति।


यतः शारीरिकभाव ईश्वरस्य विरुद्धः शत्रुताभाव एव स ईश्वरस्य व्यवस्थाया अधीनो न भवति भवितुञ्च न शक्नोति।


साम्प्रतमहं सत्यवादित्वात् किं युष्माकं रिपु र्जातोऽस्मि?


हे व्यभिचारिणो व्यभिचारिण्यश्च, संसारस्य यत् मैत्र्यं तद् ईश्वरस्य शात्रवमिति यूयं किं न जानीथ? अत एव यः कश्चित् संसारस्य मित्रं भवितुम् अभिलषति स एवेश्वरस्य शत्रु र्भवति।


ते संसारात् जातास्ततो हेतोः संसाराद् भाषन्ते संसारश्च तेषां वाक्यानि गृह्लाति।