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योहन 4:40 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

तथा च तस्यान्तिके समुपस्थाय स्वेषां सन्निधौ कतिचिद् दिनानि स्थातुं तस्मिन् विनयम् अकुर्व्वान तस्मात् स दिनद्वयं तत्स्थाने न्यवष्टत्

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

তথা চ তস্যান্তিকে সমুপস্থায স্ৱেষাং সন্নিধৌ কতিচিদ্ দিনানি স্থাতুং তস্মিন্ ৱিনযম্ অকুৰ্ৱ্ৱান তস্মাৎ স দিনদ্ৱযং তৎস্থানে ন্যৱষ্টৎ

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

তথা চ তস্যান্তিকে সমুপস্থায স্ৱেষাং সন্নিধৌ কতিচিদ্ দিনানি স্থাতুং তস্মিন্ ৱিনযম্ অকুর্ৱ্ৱান তস্মাৎ স দিনদ্ৱযং তৎস্থানে ন্যৱষ্টৎ

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

တထာ စ တသျာန္တိကေ သမုပသ္ထာယ သွေၐာံ သန္နိဓော် ကတိစိဒ် ဒိနာနိ သ္ထာတုံ တသ္မိန် ဝိနယမ် အကုရွွာန တသ္မာတ် သ ဒိနဒွယံ တတ္သ္ထာနေ နျဝၐ္ဋတ္

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

tathA ca tasyAntikE samupasthAya svESAM sannidhau katicid dinAni sthAtuM tasmin vinayam akurvvAna tasmAt sa dinadvayaM tatsthAnE nyavaSTat

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

તથા ચ તસ્યાન્તિકે સમુપસ્થાય સ્વેષાં સન્નિધૌ કતિચિદ્ દિનાનિ સ્થાતું તસ્મિન્ વિનયમ્ અકુર્વ્વાન તસ્માત્ સ દિનદ્વયં તત્સ્થાને ન્યવષ્ટત્

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

tathA ca tasyAntike samupasthAya sveSAM sannidhau katicid dinAni sthAtuM tasmin vinayam akurvvAna tasmAt sa dinadvayaM tatsthAne nyavaSTat

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



योहन 4:40
15 अन्तरसन्दर्भाः  

तस्मात् मरियम् नामधेया तस्या भगिनी यीशोः पदसमीप उवविश्य तस्योपदेशकथां श्रोतुमारेभे।


तौ साधयित्वावदतां सहावाभ्यां तिष्ठ दिने गते सति रात्रिरभूत्; ततः स ताभ्यां सार्द्धं स्थातुं गृहं ययौ।


तदानीं त्यक्तभूतमनुजस्तेन सह स्थातुं प्रार्थयाञ्चक्रे


यस्मिन् काले यद्यत् कर्म्माकार्षं तत्सर्व्वं स मह्यम् अकथयत् तस्या वनिताया इदं साक्ष्यवाक्यं श्रुत्वा तन्नगरनिवासिनो बहवः शोमिरोणीयलोका व्यश्वसन्।


ततस्तस्योपदेशेन बहवोऽपरे विश्वस्य


स्वदेशे भविष्यद्वक्तुः सत्कारो नास्तीति यद्यपि यीशुः प्रमाणं दत्वाकथयत्


अतः सा योषित् सपरिवारा मज्जिता सती विनयं कृत्वा कथितवती, युष्माकं विचाराद् यदि प्रभौ विश्वासिनी जाताहं तर्हि मम गृहम् आगत्य तिष्ठत। इत्थं सा यत्नेनास्मान् अस्थापयत्।


तस्मिन्नगरे महानन्दश्चाभवत्।


पश्याहं द्वारि तिष्ठन् तद् आहन्मि यदि कश्चित् मम रवं श्रुत्वा द्वारं मोचयति तर्ह्यहं तस्य सन्निधिं प्रविश्य तेन सार्द्धं भोक्ष्ये सो ऽपि मया सार्द्धं भोक्ष्यते।