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योहन 3:4 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

ततो निकदीमः प्रत्यवोचत् मनुजो वृद्धो भूत्वा कथं जनिष्यते? स किं पुन र्मातृर्जठरं प्रविश्य जनितुं शक्नोति?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

ততো নিকদীমঃ প্ৰত্যৱোচৎ মনুজো ৱৃদ্ধো ভূৎৱা কথং জনিষ্যতে? স কিং পুন ৰ্মাতৃৰ্জঠৰং প্ৰৱিশ্য জনিতুং শক্নোতি?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

ততো নিকদীমঃ প্রত্যৱোচৎ মনুজো ৱৃদ্ধো ভূৎৱা কথং জনিষ্যতে? স কিং পুন র্মাতৃর্জঠরং প্রৱিশ্য জনিতুং শক্নোতি?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

တတော နိကဒီမး ပြတျဝေါစတ် မနုဇော ဝၖဒ္ဓေါ ဘူတွာ ကထံ ဇနိၐျတေ? သ ကိံ ပုန ရ္မာတၖရ္ဇဌရံ ပြဝိၑျ ဇနိတုံ ၑက္နောတိ?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

tatO nikadImaH pratyavOcat manujO vRddhO bhUtvA kathaM janiSyatE? sa kiM puna rmAtRrjaTharaM pravizya janituM zaknOti?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

તતો નિકદીમઃ પ્રત્યવોચત્ મનુજો વૃદ્ધો ભૂત્વા કથં જનિષ્યતે? સ કિં પુન ર્માતૃર્જઠરં પ્રવિશ્ય જનિતું શક્નોતિ?

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

tato nikadImaH pratyavocat manujo vRddho bhUtvA kathaM janiSyate? sa kiM puna rmAtRrjaTharaM pravizya janituM zaknoti?

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



योहन 3:4
7 अन्तरसन्दर्भाः  

तदा यीशुरुत्तरं दत्तवान् तवाहं यथार्थतरं व्याहरामि पुनर्जन्मनि न सति कोपि मानव ईश्वरस्य राज्यं द्रष्टुं न शक्नोति।


यीशुरवादीद् यथार्थतरम् अहं कथयामि मनुजे तोयात्मभ्यां पुन र्न जाते स ईश्वरस्य राज्यं प्रवेष्टुं न शक्नोति।


तदा यीशुस्तान् आवोचद् युष्मानहं यथार्थतरं वदामि मनुष्यपुत्रस्यामिषे युष्माभि र्न भुक्त्ते तस्य रुधिरे च न पीते जीवनेन सार्द्धं युष्माकं सम्बन्धो नास्ति।


तदेत्थं श्रुत्वा तस्य शिष्याणाम् अनेके परस्परम् अकथयन् इदं गाढं वाक्यं वाक्यमीदृशं कः श्रोतुं शक्रुयात्?


यतो हेतो र्ये विनश्यन्ति ते तां क्रुशस्य वार्त्तां प्रलापमिव मन्यन्ते किञ्च परित्राणं लभमानेष्वस्मासु सा ईश्वरीयशक्तिस्वरूपा।


प्राणी मनुष्य ईश्वरीयात्मनः शिक्षां न गृह्लाति यत आत्मिकविचारेण सा विचार्य्येति हेतोः स तां प्रलापमिव मन्यते बोद्धुञ्च न शक्नोति।