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योहन 21:3 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

ततस्ते व्याहरन् तर्हि वयमपि त्वया सार्द्धं यामः तदा ते बहिर्गताः सन्तः क्षिप्रं नावम् आरोहन् किन्तु तस्यां रजन्याम् एकमपि न प्राप्नुवन्।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

ততস্তে ৱ্যাহৰন্ তৰ্হি ৱযমপি ৎৱযা সাৰ্দ্ধং যামঃ তদা তে বহিৰ্গতাঃ সন্তঃ ক্ষিপ্ৰং নাৱম্ আৰোহন্ কিন্তু তস্যাং ৰজন্যাম্ একমপি ন প্ৰাপ্নুৱন্|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

ততস্তে ৱ্যাহরন্ তর্হি ৱযমপি ৎৱযা সার্দ্ধং যামঃ তদা তে বহির্গতাঃ সন্তঃ ক্ষিপ্রং নাৱম্ আরোহন্ কিন্তু তস্যাং রজন্যাম্ একমপি ন প্রাপ্নুৱন্|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

တတသ္တေ ဝျာဟရန် တရှိ ဝယမပိ တွယာ သာရ္ဒ္ဓံ ယာမး တဒါ တေ ဗဟိရ္ဂတား သန္တး က္ၐိပြံ နာဝမ် အာရောဟန် ကိန္တု တသျာံ ရဇနျာမ် ဧကမပိ န ပြာပ္နုဝန်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

tatastE vyAharan tarhi vayamapi tvayA sArddhaM yAmaH tadA tE bahirgatAH santaH kSipraM nAvam ArOhan kintu tasyAM rajanyAm Ekamapi na prApnuvan|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

તતસ્તે વ્યાહરન્ તર્હિ વયમપિ ત્વયા સાર્દ્ધં યામઃ તદા તે બહિર્ગતાઃ સન્તઃ ક્ષિપ્રં નાવમ્ આરોહન્ કિન્તુ તસ્યાં રજન્યામ્ એકમપિ ન પ્રાપ્નુવન્|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

tataste vyAharan tarhi vayamapi tvayA sArddhaM yAmaH tadA te bahirgatAH santaH kSipraM nAvam Arohan kintu tasyAM rajanyAm ekamapi na prApnuvan|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



योहन 21:3
11 अन्तरसन्दर्भाः  

ततः शिमोन बभाषे, हे गुरो यद्यपि वयं कृत्स्नां यामिनीं परिश्रम्य मत्स्यैकमपि न प्राप्तास्तथापि भवतो निदेशतो जालं क्षिपामः।


प्रभाते सति यीशुस्तटे स्थितवान् किन्तु स यीशुरिति शिष्या ज्ञातुं नाशक्नुवन्।


तौ दूष्यनिर्म्माणजीविनौ, तस्मात् परस्परम् एकवृत्तिकत्वात् स ताभ्यां सह उषित्वा तत् कर्म्माकरोत्।


किन्तु मम मत्सहचरलोकानाञ्चावश्यकव्ययाय मदीयमिदं करद्वयम् अश्राम्यद् एतद् यूयं जानीथ।


अतो रोपयितृसेक्तारावसारौ वर्द्धयितेश्वर एव सारः।


सांसारिकश्रमस्य परित्यागात् किं केवलमहं बर्णब्बाश्च निवारितौ?


हे भ्रातरः, अस्माकं श्रमः क्लेेशश्च युष्माभिः स्मर्य्यते युष्माकं कोऽपि यद् भारग्रस्तो न भवेत् तदर्थं वयं दिवानिशं परिश्राम्यन्तो युष्मन्मध्य ईश्वरस्य सुसंवादमघोषयाम।