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योहन 12:3 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

तदा मरियम् अर्द्धसेटकं बहुमूल्यं जटामांसीयं तैलम् आनीय यीशोश्चरणयो र्मर्द्दयित्वा निजकेश र्मार्ष्टुम् आरभत; तदा तैलस्य परिमलेन गृहम् आमोदितम् अभवत्।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

তদা মৰিযম্ অৰ্দ্ধসেটকং বহুমূল্যং জটামাংসীযং তৈলম্ আনীয যীশোশ্চৰণযো ৰ্মৰ্দ্দযিৎৱা নিজকেশ ৰ্মাৰ্ষ্টুম্ আৰভত; তদা তৈলস্য পৰিমলেন গৃহম্ আমোদিতম্ অভৱৎ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

তদা মরিযম্ অর্দ্ধসেটকং বহুমূল্যং জটামাংসীযং তৈলম্ আনীয যীশোশ্চরণযো র্মর্দ্দযিৎৱা নিজকেশ র্মার্ষ্টুম্ আরভত; তদা তৈলস্য পরিমলেন গৃহম্ আমোদিতম্ অভৱৎ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

တဒါ မရိယမ် အရ္ဒ္ဓသေဋကံ ဗဟုမူလျံ ဇဋာမာံသီယံ တဲလမ် အာနီယ ယီၑောၑ္စရဏယော ရ္မရ္ဒ္ဒယိတွာ နိဇကေၑ ရ္မာရ္ၐ္ဋုမ် အာရဘတ; တဒါ တဲလသျ ပရိမလေန ဂၖဟမ် အာမောဒိတမ် အဘဝတ်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

tadA mariyam arddhasETakaM bahumUlyaM jaTAmAMsIyaM tailam AnIya yIzOzcaraNayO rmarddayitvA nijakEza rmArSTum Arabhata; tadA tailasya parimalEna gRham AmOditam abhavat|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

તદા મરિયમ્ અર્દ્ધસેટકં બહુમૂલ્યં જટામાંસીયં તૈલમ્ આનીય યીશોશ્ચરણયો ર્મર્દ્દયિત્વા નિજકેશ ર્માર્ષ્ટુમ્ આરભત; તદા તૈલસ્ય પરિમલેન ગૃહમ્ આમોદિતમ્ અભવત્|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

tadA mariyam arddhaseTakaM bahumUlyaM jaTAmAMsIyaM tailam AnIya yIzozcaraNayo rmarddayitvA nijakeza rmArSTum Arabhata; tadA tailasya parimalena gRham Amoditam abhavat|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



योहन 12:3
16 अन्तरसन्दर्भाः  

किन्तु प्रयोजनीयम् एकमात्रम् आस्ते। अपरञ्च यमुत्तमं भागं कोपि हर्त्तुं न शक्नोति सएव मरियमा वृतः।


त्वञ्च मदीयोत्तमाङ्गे किञ्चिदपि तैलं नामर्दीः किन्तु योषिदेषा मम चरणौ सुगन्धितैलेनामर्द्दीत्।


या मरियम् प्रभुं सुगन्धितेलैन मर्द्दयित्वा स्वकेशैस्तस्य चरणौ सममार्जत् तस्या भ्राता स इलियासर् रोगी।


इति कथां कथयित्वा सा गत्वा स्वां भगिनीं मरियमं गुप्तमाहूय व्याहरत् गुरुरुपतिष्ठति त्वामाहूयति च।


यत्र यीशुरतिष्ठत् तत्र मरियम् उपस्थाय तं दृष्ट्वा तस्य चरणयोः पतित्वा व्याहरत् हे प्रभो यदि भवान् अत्रास्थास्यत् तर्हि मम भ्राता नामरिष्यत्।


अपरं यो निकदीमो रात्रौ यीशोः समीपम् अगच्छत् सोपि गन्धरसेन मिश्रितं प्रायेण पञ्चाशत्सेटकमगुरुं गृहीत्वागच्छत्।