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प्रेरिता 5:4 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

सा भूमि र्यदा तव हस्तगता तदा किं तव स्वीया नासीत्? तर्हि स्वान्तःकरणे कुत एतादृशी कुकल्पना त्वया कृता? त्वं केवलमनुष्यस्य निकटे मृषावाक्यं नावादीः किन्त्वीश्वरस्य निकटेऽपि।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

সা ভূমি ৰ্যদা তৱ হস্তগতা তদা কিং তৱ স্ৱীযা নাসীৎ? তৰ্হি স্ৱান্তঃকৰণে কুত এতাদৃশী কুকল্পনা ৎৱযা কৃতা? ৎৱং কেৱলমনুষ্যস্য নিকটে মৃষাৱাক্যং নাৱাদীঃ কিন্ত্ৱীশ্ৱৰস্য নিকটেঽপি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

সা ভূমি র্যদা তৱ হস্তগতা তদা কিং তৱ স্ৱীযা নাসীৎ? তর্হি স্ৱান্তঃকরণে কুত এতাদৃশী কুকল্পনা ৎৱযা কৃতা? ৎৱং কেৱলমনুষ্যস্য নিকটে মৃষাৱাক্যং নাৱাদীঃ কিন্ত্ৱীশ্ৱরস্য নিকটেঽপি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

သာ ဘူမိ ရျဒါ တဝ ဟသ္တဂတာ တဒါ ကိံ တဝ သွီယာ နာသီတ်? တရှိ သွာန္တးကရဏေ ကုတ ဧတာဒၖၑီ ကုကလ္ပနာ တွယာ ကၖတာ? တွံ ကေဝလမနုၐျသျ နိကဋေ မၖၐာဝါကျံ နာဝါဒီး ကိန္တွီၑွရသျ နိကဋေ'ပိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

sA bhUmi ryadA tava hastagatA tadA kiM tava svIyA nAsIt? tarhi svAntaHkaraNE kuta EtAdRzI kukalpanA tvayA kRtA? tvaM kEvalamanuSyasya nikaTE mRSAvAkyaM nAvAdIH kintvIzvarasya nikaTE'pi|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

સા ભૂમિ ર્યદા તવ હસ્તગતા તદા કિં તવ સ્વીયા નાસીત્? તર્હિ સ્વાન્તઃકરણે કુત એતાદૃશી કુકલ્પના ત્વયા કૃતા? ત્વં કેવલમનુષ્યસ્ય નિકટે મૃષાવાક્યં નાવાદીઃ કિન્ત્વીશ્વરસ્ય નિકટેઽપિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

sA bhUmi ryadA tava hastagatA tadA kiM tava svIyA nAsIt? tarhi svAntaHkaraNe kuta etAdRzI kukalpanA tvayA kRtA? tvaM kevalamanuSyasya nikaTe mRSAvAkyaM nAvAdIH kintvIzvarasya nikaTe'pi|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



प्रेरिता 5:4
26 अन्तरसन्दर्भाः  

यो जनो युष्माकं वाक्यं गृह्लाति स ममैव वाक्यं गृह्लाति; किञ्च यो जनो युष्माकम् अवज्ञां करोति स ममैवावज्ञां करोति; यो जनो ममावज्ञां करोति च स मत्प्रेरकस्यैवावज्ञां करोति।


तस्मात् पितरोकथयत् हे अनानिय भूमे र्मूल्यं किञ्चित् सङ्गोप्य स्थापयितुं पवित्रस्यात्मनः सन्निधौ मृषावाक्यं कथयितुञ्च शैतान् कुतस्तवान्तःकरणे प्रवृत्तिमजनयत्?


ततः पितरोकथयत् युवां कथं परमेश्वरस्यात्मानं परीक्षितुम् एकमन्त्रणावभवतां? पश्य ये तव पतिं श्मशाने स्थापितवन्तस्ते द्वारस्य समीपे समुपतिष्ठन्ति त्वामपि बहिर्नेष्यन्ति।


किन्तु भक्ष्यद्रव्याद् वयम् ईश्वरेण ग्राह्या भवामस्तन्नहि यतो भुङ्क्त्वा वयमुत्कृष्टा न भवामस्तद्वदभुङ्क्त्वाप्यपकृष्टा न भवामः।


अतो हेतो र्यः कश्चिद् वाक्यमेतन्न गृह्लाति स मनुष्यम् अवजानातीति नहि येन स्वकीयात्मा युष्मदन्तरे समर्पितस्तम् ईश्वरम् एवावजानाति।


किन्तु तव सौजन्यं यद् बलेन न भूत्वा स्वेच्छायाः फलं भवेत् तदर्थं तव सम्मतिं विना किमपि कर्त्तव्यं नामन्ये।


तस्मात् सा मनोवाञ्छा सगर्भा भूत्वा दुष्कृतिं प्रसूते दुष्कृतिश्च परिणामं गत्वा मृत्युं जनयति।