युष्माकं का वाञ्छा? युष्मत्समीपे मया किं दण्डपाणिना गन्तव्यमुत प्रेमनम्रतात्मयुक्तेन वा?
2 कुरिन्थियों 13:10 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari अतो हेतोः प्रभु र्युष्माकं विनाशाय नहि किन्तु निष्ठायै यत् सामर्थ्यम् अस्मभ्यं दत्तवान् तेन यद् उपस्थितिकाले काठिन्यं मयाचरितव्यं न भवेत् तदर्थम् अनुपस्थितेन मया सर्व्वाण्येतानि लिख्यन्ते। अधिकानि संस्करणानिসত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script অতো হেতোঃ প্ৰভু ৰ্যুষ্মাকং ৱিনাশায নহি কিন্তু নিষ্ঠাযৈ যৎ সামৰ্থ্যম্ অস্মভ্যং দত্তৱান্ তেন যদ্ উপস্থিতিকালে কাঠিন্যং মযাচৰিতৱ্যং ন ভৱেৎ তদৰ্থম্ অনুপস্থিতেন মযা সৰ্ৱ্ৱাণ্যেতানি লিখ্যন্তে| সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script অতো হেতোঃ প্রভু র্যুষ্মাকং ৱিনাশায নহি কিন্তু নিষ্ঠাযৈ যৎ সামর্থ্যম্ অস্মভ্যং দত্তৱান্ তেন যদ্ উপস্থিতিকালে কাঠিন্যং মযাচরিতৱ্যং ন ভৱেৎ তদর্থম্ অনুপস্থিতেন মযা সর্ৱ্ৱাণ্যেতানি লিখ্যন্তে| သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script အတော ဟေတေား ပြဘု ရျုၐ္မာကံ ဝိနာၑာယ နဟိ ကိန္တု နိၐ္ဌာယဲ ယတ် သာမရ္ထျမ် အသ္မဘျံ ဒတ္တဝါန် တေန ယဒ် ဥပသ္ထိတိကာလေ ကာဌိနျံ မယာစရိတဝျံ န ဘဝေတ် တဒရ္ထမ် အနုပသ္ထိတေန မယာ သရွွာဏျေတာနိ လိချန္တေ၊ satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script atO hEtOH prabhu ryuSmAkaM vinAzAya nahi kintu niSThAyai yat sAmarthyam asmabhyaM dattavAn tEna yad upasthitikAlE kAThinyaM mayAcaritavyaM na bhavEt tadartham anupasthitEna mayA sarvvANyEtAni likhyantE| સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script અતો હેતોઃ પ્રભુ ર્યુષ્માકં વિનાશાય નહિ કિન્તુ નિષ્ઠાયૈ યત્ સામર્થ્યમ્ અસ્મભ્યં દત્તવાન્ તેન યદ્ ઉપસ્થિતિકાલે કાઠિન્યં મયાચરિતવ્યં ન ભવેત્ તદર્થમ્ અનુપસ્થિતેન મયા સર્વ્વાણ્યેતાનિ લિખ્યન્તે| satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script ato hetoH prabhu ryuSmAkaM vinAzAya nahi kintu niSThAyai yat sAmarthyam asmabhyaM dattavAn tena yad upasthitikAle kAThinyaM mayAcaritavyaM na bhavet tadartham anupasthitena mayA sarvvANyetAni likhyante| |
युष्माकं का वाञ्छा? युष्मत्समीपे मया किं दण्डपाणिना गन्तव्यमुत प्रेमनम्रतात्मयुक्तेन वा?
अस्मत्प्रभो र्यीशुख्रीष्टस्य नाम्ना युष्माकं मदीयात्मनश्च मिलने जाते ऽस्मत्प्रभो र्यीशुख्रीष्टस्य शक्तेः साहाय्येन
मम प्रार्थनीयमिदं वयं यैः शारीरिकाचारिणो मन्यामहे तान् प्रति यां प्रगल्भतां प्रकाशयितुं निश्चिनोमि सा प्रगल्भता समागतेन मयाचरितव्या न भवतु।
अस्माकं युद्धास्त्राणि च न शारीरिकानि किन्त्वीश्वरेण दुर्गभञ्जनाय प्रबलानि भवन्ति,
युष्माकं निपाताय तन्नहि किन्तु निष्ठायै प्रभुना दत्तं यदस्माकं सामर्थ्यं तेन यद्यपि किञ्चिद् अधिकं श्लाघे तथापि तस्मान्न त्रपिष्ये।
पूर्व्वं ये कृतपापास्तेभ्योऽन्येभ्यश्च सर्व्वेभ्यो मया पूर्व्वं कथितं, पुनरपि विद्यमानेनेवेदानीम् अविद्यमानेन मया कथ्यते, यदा पुनरागमिष्यामि तदाहं न क्षमिष्ये।
यतः सत्यताया विपक्षतां कर्त्तुं वयं न समर्थाः किन्तु सत्यतायाः साहाय्यं कर्त्तुमेव।
मम यो हर्षः स युष्माकं सर्व्वेषां हर्ष एवेति निश्चितं मयाबोधि; अतएव यैरहं हर्षयितव्यस्तै र्मदुपस्थितिसमये यन्मम शोको न जायेत तदर्थमेव युष्मभ्यम् एतादृशं पत्रं मया लिखितं।
साक्ष्यमेतत् तथ्यं, अतोे हेतोस्त्वं तान् गाढं भर्त्सय ते च यथा विश्वासे स्वस्था भवेयु