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2 कुरिन्थियों 10:2 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

मम प्रार्थनीयमिदं वयं यैः शारीरिकाचारिणो मन्यामहे तान् प्रति यां प्रगल्भतां प्रकाशयितुं निश्चिनोमि सा प्रगल्भता समागतेन मयाचरितव्या न भवतु।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

মম প্ৰাৰ্থনীযমিদং ৱযং যৈঃ শাৰীৰিকাচাৰিণো মন্যামহে তান্ প্ৰতি যাং প্ৰগল্ভতাং প্ৰকাশযিতুং নিশ্চিনোমি সা প্ৰগল্ভতা সমাগতেন মযাচৰিতৱ্যা ন ভৱতু|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

মম প্রার্থনীযমিদং ৱযং যৈঃ শারীরিকাচারিণো মন্যামহে তান্ প্রতি যাং প্রগল্ভতাং প্রকাশযিতুং নিশ্চিনোমি সা প্রগল্ভতা সমাগতেন মযাচরিতৱ্যা ন ভৱতু|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

မမ ပြာရ္ထနီယမိဒံ ဝယံ ယဲး ၑာရီရိကာစာရိဏော မနျာမဟေ တာန် ပြတိ ယာံ ပြဂလ္ဘတာံ ပြကာၑယိတုံ နိၑ္စိနောမိ သာ ပြဂလ္ဘတာ သမာဂတေန မယာစရိတဝျာ န ဘဝတု၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

mama prArthanIyamidaM vayaM yaiH zArIrikAcAriNO manyAmahE tAn prati yAM pragalbhatAM prakAzayituM nizcinOmi sA pragalbhatA samAgatEna mayAcaritavyA na bhavatu|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

મમ પ્રાર્થનીયમિદં વયં યૈઃ શારીરિકાચારિણો મન્યામહે તાન્ પ્રતિ યાં પ્રગલ્ભતાં પ્રકાશયિતું નિશ્ચિનોમિ સા પ્રગલ્ભતા સમાગતેન મયાચરિતવ્યા ન ભવતુ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

mama prArthanIyamidaM vayaM yaiH zArIrikAcAriNo manyAmahe tAn prati yAM pragalbhatAM prakAzayituM nizcinomi sA pragalbhatA samAgatena mayAcaritavyA na bhavatu|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



2 कुरिन्थियों 10:2
12 अन्तरसन्दर्भाः  

ये जनाः ख्रीष्टं यीशुम् आश्रित्य शारीरिकं नाचरन्त आत्मिकमाचरन्ति तेऽधुना दण्डार्हा न भवन्ति।


ततः शारीरिकं नाचरित्वास्माभिरात्मिकम् आचरद्भिर्व्यवस्थाग्रन्थे निर्द्दिष्टानि पुण्यकर्म्माणि सर्व्वाणि साध्यन्ते।


ये शारीरिकाचारिणस्ते शारीरिकान् विषयान् भावयन्ति ये चात्मिकाचारिणस्ते आत्मनो विषयान् भावयन्ति।


एतादृशी मन्त्रणा मया किं चाञ्चल्येन कृता? यद् यद् अहं मन्त्रये तत् किं विषयिलोकइव मन्त्रयाण आदौ स्वीकृत्य पश्चाद् अस्वीकुर्व्वे?


दौर्ब्बल्याद् युष्माभिरवमानिता इव वयं भाषामहे, किन्त्वपरस्य कस्यचिद् येन प्रगल्भता जायते तेन ममापि प्रगल्भता जायत इति निर्ब्बोधेनेव मया वक्तव्यं।


अतो हेतोः प्रभु र्युष्माकं विनाशाय नहि किन्तु निष्ठायै यत् सामर्थ्यम् अस्मभ्यं दत्तवान् तेन यद् उपस्थितिकाले काठिन्यं मयाचरितव्यं न भवेत् तदर्थम् अनुपस्थितेन मया सर्व्वाण्येतानि लिख्यन्ते।


पूर्व्वं ये कृतपापास्तेभ्योऽन्येभ्यश्च सर्व्वेभ्यो मया पूर्व्वं कथितं, पुनरपि विद्यमानेनेवेदानीम् अविद्यमानेन मया कथ्यते, यदा पुनरागमिष्यामि तदाहं न क्षमिष्ये।