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2 कुरिन्थियों 1:6 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

वयं यदि क्लिश्यामहे तर्हि युष्माकं सान्त्वनापरित्राणयोः कृते क्लिश्यामहे यतोऽस्माभि र्यादृशानि दुःखानि सह्यन्ते युष्माकं तादृशदुःखानां सहनेन तौ साधयिष्येते इत्यस्मिन् युष्मानधि मम दृढा प्रत्याशा भवति।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

ৱযং যদি ক্লিশ্যামহে তৰ্হি যুষ্মাকং সান্ত্ৱনাপৰিত্ৰাণযোঃ কৃতে ক্লিশ্যামহে যতোঽস্মাভি ৰ্যাদৃশানি দুঃখানি সহ্যন্তে যুষ্মাকং তাদৃশদুঃখানাং সহনেন তৌ সাধযিষ্যেতে ইত্যস্মিন্ যুষ্মানধি মম দৃঢা প্ৰত্যাশা ভৱতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

ৱযং যদি ক্লিশ্যামহে তর্হি যুষ্মাকং সান্ত্ৱনাপরিত্রাণযোঃ কৃতে ক্লিশ্যামহে যতোঽস্মাভি র্যাদৃশানি দুঃখানি সহ্যন্তে যুষ্মাকং তাদৃশদুঃখানাং সহনেন তৌ সাধযিষ্যেতে ইত্যস্মিন্ যুষ্মানধি মম দৃঢা প্রত্যাশা ভৱতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

ဝယံ ယဒိ က္လိၑျာမဟေ တရှိ ယုၐ္မာကံ သာန္တွနာပရိတြာဏယေား ကၖတေ က္လိၑျာမဟေ ယတော'သ္မာဘိ ရျာဒၖၑာနိ ဒုးခါနိ သဟျန္တေ ယုၐ္မာကံ တာဒၖၑဒုးခါနာံ သဟနေန တော် သာဓယိၐျေတေ ဣတျသ္မိန် ယုၐ္မာနဓိ မမ ဒၖဎာ ပြတျာၑာ ဘဝတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

vayaM yadi klizyAmahE tarhi yuSmAkaM sAntvanAparitrANayOH kRtE klizyAmahE yatO'smAbhi ryAdRzAni duHkhAni sahyantE yuSmAkaM tAdRzaduHkhAnAM sahanEna tau sAdhayiSyEtE ityasmin yuSmAnadhi mama dRPhA pratyAzA bhavati|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

વયં યદિ ક્લિશ્યામહે તર્હિ યુષ્માકં સાન્ત્વનાપરિત્રાણયોઃ કૃતે ક્લિશ્યામહે યતોઽસ્માભિ ર્યાદૃશાનિ દુઃખાનિ સહ્યન્તે યુષ્માકં તાદૃશદુઃખાનાં સહનેન તૌ સાધયિષ્યેતે ઇત્યસ્મિન્ યુષ્માનધિ મમ દૃઢા પ્રત્યાશા ભવતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

vayaM yadi klizyAmahe tarhi yuSmAkaM sAntvanAparitrANayoH kRte klizyAmahe yato'smAbhi ryAdRzAni duHkhAni sahyante yuSmAkaM tAdRzaduHkhAnAM sahanena tau sAdhayiSyete ityasmin yuSmAnadhi mama dRDhA pratyAzA bhavati|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



2 कुरिन्थियों 1:6
13 अन्तरसन्दर्भाः  

ततस्तेषु सप्तसु दिनेषु यापितेषु सत्सु वयं तस्मात् स्थानात् निजवर्त्मना गतवन्तः, तस्मात् ते सबालवृद्धवनिता अस्माभिः सह नगरस्य परिसरपर्य्यन्तम् आगताः पश्चाद्वयं जलधितटे जानुपातं प्रार्थयामहि।


अपरम् ईश्वरीयनिरूपणानुसारेणाहूताः सन्तो ये तस्मिन् प्रीयन्ते सर्व्वाणि मिलित्वा तेषां मङ्गलं साधयन्ति, एतद् वयं जानीमः।


यतो वयम् ईश्वरात् सान्त्वनां प्राप्य तया सान्त्वनया यत् सर्व्वविधक्लिष्टान् लोकान् सान्त्वयितुं शक्नुयाम तदर्थं सोऽस्माकं सर्व्वक्लेशसमयेऽस्मान् सान्त्वयति।


अपरञ्च युष्मासु बहु प्रीयमाणोऽप्यहं यदि युष्मत्तोऽल्पं प्रम लभे तथापि युष्माकं प्राणरक्षार्थं सानन्दं बहु व्ययं सर्व्वव्ययञ्च करिष्यामि।


एतदर्थं वयं येन सृष्टाः स ईश्वर एव स चास्मभ्यं सत्यङ्कारस्य पणस्वरूपम् आत्मानं दत्तवान्।


अतो हेतो र्भिन्नजातीयानां युष्माकं निमित्तं यीशुख्रीष्टस्य बन्दी यः सोऽहं पौलो ब्रवीमि।


अतोऽहं युष्मन्निमित्तं दुःखभोगेन क्लान्तिं यन्न गच्छामीति प्रार्थये यतस्तदेव युष्माकं गौरवं।


युष्माकं प्रार्थनया यीशुख्रीष्टस्यात्मनश्चोपकारेण तत् मन्निस्तारजनकं भविष्यतीति जानामि।


ख्रीष्टेन यीशुना यद् अनन्तगौरवसहितं परित्राणं जायते तदभिरुचितै र्लोकैरपि यत् लभ्येत तदर्थमहं तेषां निमित्तं सर्व्वाण्येतानि सहे।