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1 कुरिन्थियों 7:11 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

भार्य्या भर्त्तृतः पृथक् न भवतु। यदि वा पृथग्भूता स्यात् तर्हि निर्विवाहा तिष्ठतु स्वीयपतिना वा सन्दधातु भर्त्तापि भार्य्यां न त्यजतु।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

ভাৰ্য্যা ভৰ্ত্তৃতঃ পৃথক্ ন ভৱতু| যদি ৱা পৃথগ্ভূতা স্যাৎ তৰ্হি নিৰ্ৱিৱাহা তিষ্ঠতু স্ৱীযপতিনা ৱা সন্দধাতু ভৰ্ত্তাপি ভাৰ্য্যাং ন ত্যজতু|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

ভার্য্যা ভর্ত্তৃতঃ পৃথক্ ন ভৱতু| যদি ৱা পৃথগ্ভূতা স্যাৎ তর্হি নির্ৱিৱাহা তিষ্ঠতু স্ৱীযপতিনা ৱা সন্দধাতু ভর্ত্তাপি ভার্য্যাং ন ত্যজতু|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

ဘာရျျာ ဘရ္တ္တၖတး ပၖထက် န ဘဝတု၊ ယဒိ ဝါ ပၖထဂ္ဘူတာ သျာတ် တရှိ နိရွိဝါဟာ တိၐ္ဌတု သွီယပတိနာ ဝါ သန္ဒဓာတု ဘရ္တ္တာပိ ဘာရျျာံ န တျဇတု၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

bhAryyA bharttRtaH pRthak na bhavatu| yadi vA pRthagbhUtA syAt tarhi nirvivAhA tiSThatu svIyapatinA vA sandadhAtu bharttApi bhAryyAM na tyajatu|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

ભાર્ય્યા ભર્ત્તૃતઃ પૃથક્ ન ભવતુ| યદિ વા પૃથગ્ભૂતા સ્યાત્ તર્હિ નિર્વિવાહા તિષ્ઠતુ સ્વીયપતિના વા સન્દધાતુ ભર્ત્તાપિ ભાર્ય્યાં ન ત્યજતુ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

bhAryyA bharttRtaH pRthak na bhavatu| yadi vA pRthagbhUtA syAt tarhi nirvivAhA tiSThatu svIyapatinA vA sandadhAtu bharttApi bhAryyAM na tyajatu|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



1 कुरिन्थियों 7:11
10 अन्तरसन्दर्भाः  

किन्त्वहं युष्मान् व्याहरामि, व्यभिचारदोषे न जाते यदि कश्चिन् निजजायां परित्यजति, तर्हि स तां व्यभिचारयति; यश्च तां त्यक्तां स्त्रियं विवहति, सोपि व्यभिचरति।


काचिन्नारी यदि स्वपतिं हित्वान्यपुंसा विवाहिता भवति तर्हि सापि व्यभिचारिणी भवति।


तदा फिरूशिनस्तत्समीपम् एत्य तं परीक्षितुं पप्रच्छः स्वजाया मनुजानां त्यज्या न वेति?


यः कश्चित् स्वीयां भार्य्यां विहाय स्त्रियमन्यां विवहति स परदारान् गच्छति, यश्च ता त्यक्तां नारीं विवहति सोपि परदारान गच्छति।


ये च कृतविवाहास्ते मया नहि प्रभुनैवैतद् आज्ञाप्यन्ते।


इतरान् जनान् प्रति प्रभु र्न ब्रवीति किन्त्वहं ब्रवीमि; कस्यचिद् भ्रातुर्योषिद् अविश्वासिनी सत्यपि यदि तेन सहवासे तुष्यति तर्हि सा तेन न त्यज्यतां।