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1 कुरिन्थियों 8:7 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

7 अधिकन्तु ज्ञानं सर्व्वेषां नास्ति यतः केचिदद्यापि देवतां सम्मन्य देवप्रसादमिव तद् भक्ष्यं भुञ्जते तेन दुर्ब्बलतया तेषां स्वान्तानि मलीमसानि भवन्ति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

7 অধিকন্তু জ্ঞানং সৰ্ৱ্ৱেষাং নাস্তি যতঃ কেচিদদ্যাপি দেৱতাং সম্মন্য দেৱপ্ৰসাদমিৱ তদ্ ভক্ষ্যং ভুঞ্জতে তেন দুৰ্ব্বলতযা তেষাং স্ৱান্তানি মলীমসানি ভৱন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

7 অধিকন্তু জ্ঞানং সর্ৱ্ৱেষাং নাস্তি যতঃ কেচিদদ্যাপি দেৱতাং সম্মন্য দেৱপ্রসাদমিৱ তদ্ ভক্ষ্যং ভুঞ্জতে তেন দুর্ব্বলতযা তেষাং স্ৱান্তানি মলীমসানি ভৱন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

7 အဓိကန္တု ဇ္ဉာနံ သရွွေၐာံ နာသ္တိ ယတး ကေစိဒဒျာပိ ဒေဝတာံ သမ္မနျ ဒေဝပြသာဒမိဝ တဒ် ဘက္ၐျံ ဘုဉ္ဇတေ တေန ဒုရ္ဗ္ဗလတယာ တေၐာံ သွာန္တာနိ မလီမသာနိ ဘဝန္တိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

7 adhikantu jnjAnaM sarvvESAM nAsti yataH kEcidadyApi dEvatAM sammanya dEvaprasAdamiva tad bhakSyaM bhunjjatE tEna durbbalatayA tESAM svAntAni malImasAni bhavanti|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

7 અધિકન્તુ જ્ઞાનં સર્વ્વેષાં નાસ્તિ યતઃ કેચિદદ્યાપિ દેવતાં સમ્મન્ય દેવપ્રસાદમિવ તદ્ ભક્ષ્યં ભુઞ્જતે તેન દુર્બ્બલતયા તેષાં સ્વાન્તાનિ મલીમસાનિ ભવન્તિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




1 कुरिन्थियों 8:7
11 अन्तरसन्दर्भाः  

देवताप्रसादाशुचिभक्ष्यं व्यभिचारकर्म्म कण्ठसम्पीडनमारितप्राणिभक्ष्यं रक्तभक्ष्यञ्च एतानि परित्यक्तुं लिखामः।


किमपि वस्तु स्वभावतो नाशुचि भवतीत्यहं जाने तथा प्रभुना यीशुख्रीष्टेनापि निश्चितं जाने, किन्तु यो जनो यद् द्रव्यम् अपवित्रं जानीते तस्य कृते तद् अपवित्रम् आस्ते।


हे भ्रातरो यूयं सद्भावयुक्ताः सर्व्वप्रकारेण ज्ञानेन च सम्पूर्णाः परस्परोपदेशे च तत्परा इत्यहं निश्चितं जानामि,


आपणे यत् क्रय्यं तद् युष्माभिः संवेदस्यार्थं किमपि न पृष्ट्वा भुज्यतां


देवप्रसादे सर्व्वेषाम् अस्माकं ज्ञानमास्ते तद्वयं विद्मः। तथापि ज्ञानं गर्व्वं जनयति किन्तु प्रेमतो निष्ठा जायते।


देवताबलिप्रसादभक्षणे वयमिदं विद्मो यत् जगन्मध्ये कोऽपि देवो न विद्यते, एकश्चेश्वरो द्वितीयो नास्तीति।


हे भ्रातरः, युष्मान् विनयामहे यूयम् अविहिताचारिणो लोकान् भर्त्सयध्वं, क्षुद्रमनसः सान्त्वयत, दुर्ब्बलान् उपकुरुत, सर्व्वान् प्रति सहिष्णवो भवत च।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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