35 इसताँई तुम बी जगते रौह, कैसेकै तुम ना जानौ हौ कै घर को मालिक ना जानै कब आ जाय। साँज कै या आधी रात कै, या मुरगा के बाँक दैनै के टैम मै, या फिर दिन लिकरे।
और जब ईसु नै देखो, कै उनकै किसती चलानै मै बड़ी मुसकल हो रई है, कैसेकै हवा उनके खिलाप चल रई ही, तौ तड़के इन्धेरे पड़े ईसु झील मै चलते भए उनके धौंरे आओ, और उनसै अग्गे लिकर जानो चाँहै हो।