कैसेकै ऐंसे दिन आ रए हैं जब लोग कैंगे, ‘किसमतबारी हैं, बे बईयरैं जो बाँज हैं और किसमतबारी है बौ कोख जिसनै किसी कै कबी जलमई ना दओ। और किसमतबारी हैं बे जिसके इस्तनौ नै कबी दूदई ना पिबाओ।
उन बईयरौं के ताँई, जो गरबबती हौंगी और उनके ताँई जो दूद पिबाती हौंगी, बे दिन कितने भयानक हौंगे। कैसेकै उन दिनौ इस देस मै भौत बड़ी मुसीबत आंगी और इन लोगौं के ऊपर परमेसर को घुस्सा होगो।
बासै कैललगे, “का तू सुनै है कै जे का कैरए हैं?” ईसु नै उनसै कैई, “हाँ सुनौ हौं, का पबित्तर सास्तर मै तुमनै ना पढ़ो, तैनै बड़े बालकौ और दूद पीते बालकौ तक सै गुनगान करबाओ है?”