40 पर मारथा सेवा करते करते परेसान हो गई और बाके धौंरे आकै कैललगी, “हे परभु, का तेकै जौ ठीक लगै है कै मेरी बहन नै सेवा-पानी की सैरी जिम्मेदारी मेरे ऊपरई छोड़ दई है? बासै कैह, कै बौ मेरी मदत करै।”
जब साँज भई, तौ बाके चेलौ नै बाके धौंरे आकै कैई, “जौ तौ सुनसान जघै है और दिन छप गओ है, लोगौ कै बिदा करो जाय कै बे बस्तिऔं मै जाकै अपने ताँई खानो मोल ले लैं।”
बा खाने के ताँई मैहनत ना करौ जो सड़ जावै है, पर बा खाने के ताँई मैहनत करौ जो हमेसा जिन्दगी भर बनो रैहबै है, जिसकै आदमी को लौंड़ा तुमकै देगो, कैसेकै अब्बा यानी परमेसर नै बाई मै अपनी मौहर लगाई है।”