10 तुम अब खास दिन और महीना, रुत और सालौं कै मनाबौ हौ।
और फिर कोई किसी एक दिन कै सब दिनौ सै अच्छो मानै है और कोई सब दिनौ कै एक जैसे मानै है, तौ हर किसी कै पूरी तरै सै अपने मन की बात माननी चँईऐ।
पर मैंकै जा बात सै डर लगै है कै जो मैहनत मैंनै तुमरे बीच मै करी है बौ सिगरी कहीं बेकार ना जाय?