पौलुस नै कैई कै, “जल्दी या देर सैई पर मेरी परमेसर सै जौ बिनती है कै, तूई ना पर जित्ते बी लोग मेरी आज सुन रए हैं, सिरप इन साँकरौ कै छोड़कै, बे मेरे हाँई हो जांगे।”
मेरी इच्छा और आस जौई है कै चाँहे मैं मरौं या जिन्दो रैहऔ मेरी किसी बात मै बेजती ना होए, पर मेरे सरीर सै हमेसा पूरी हिम्मत के संग मसी की महिमा होती रैहऐ जैसी हमेसा होवै है, और अब्बी हो रई है।
तुम सबके बारे मै ऐंसो सोचनो मेरे ताँई ठीकई है, कैसेकै तुम मेरे दिल मै बसे भए हौ, चाँहै मैं जेल मै हौं, या मैं अच्छी खबर की सच्चाई कै बचाबौ हौं या पक्को दाबो करौ हौं, और उन सबई बखतौ मै तुम सबई परमेसर के जा किरपा मै मेरे साती हौ।
और जाके संग-संग तुम हमरे ताँई बी पिराथना करौ, जिस्सै परमेसर हमकै बचन सुनानै के ताँई ऐंसी रस्ता खोल दै कै, हम मसी की बा गुप्त बात के बारे मै बता सकैं जिसकी बजै सै मैं कैद मै हौं।
और तुम जौ बात बी जानौ हौ कै तुमरे धौंरे आनै सै पैले फिलिप्पी मै हमकै दुख झेलनो और बुरो बरताब सैहनो पड़ो। पर फिर बी हमनै परमेसर की सायता सै बड़े बिरोद को सामनो करते भए, बिना डरे तुम लोगौ के बीच मै परमेसर की अच्छी खबर कै सुनाओ है।
पियारे सातिऔं, मैं उस मुक्ति के बारे मै लिखनै की कोसिस कर रओ हो जिसमै हम सब सामिल हे, पर जौ मैंनै लिखनो और बिनती कन्नो जरूरी समजो कै तुम बा बिसवास के ताँई बड़े जोस सै कोसिस करते रौह जो हमेसा के ताँई परमेसर के पबित्तर लोगौ कै देओ गओ हो।