2 और जब तक हम जा घर के हाँई सरीर मै पड़े हैं, तब तक कैंखते रैहबैं हैं, और जौ चाँहबै हैं कै हम अपने सुरग के घर मै कब बसैं।
मैं कितनो अभागो आदमी हौं! मैंकै इस मरनै बारे सरीर सै कौन बचागो?
और ना सिरप बेई पर हम बी जिनकै आत्मा को पैलो फल मिलो है, खुदई अपने भीतर कैंखैं हैं। कैसेकै हम परमेसर की औलाद बन्नै को और अपने सरीर की मुक्ति पानै को पैंड़ो देख रए हैं।
सुनौ, मैं तुमकै एक छिपी भई बात कैरओ हौं कै, हम सबई मरंगे ना पर सबई बदल जांगे।
मैं इन दौनौ बातौं के बीच मै लटको हौं, और मन करै है कै, मैं अपनी जिन्दगी सै बिदा होकै मसी के संग रैहऔं कैसेकै जौ सबसै अच्छो है।