इसताँई चौकस रैहऔ, कै तुम किस रीती सै सुनौ हौ, कैसेकै जिसके धौंरे कुछ है, उसई कै और दओ जागो और जिसके धौंरे कुछ ना है, बासै बौ बी ले लओ जागो, जिसकै बौ अपनो समजै है।”
चौकस रौह, कहीं ऐंसो ना होए कै तुमकै आदमी को गियान, झूँटी और बेकार की बातौं सै कोई अपने कबजा मै ना कर लै, जो आदमिऔ और दुनिया के बनाए भए रीती रिबाज के ऊपर टिके हैं, पर मसी की सिक्छा ऐंसी ना है।
पियारे भईयौ, तुम इन बातौं कै पैलेई सै जानौ हौ इसताँई चौकस रौह। कहीं ऐंसो ना होए कै तुम उन दुसट आदमिऔ के बैहकाबे मै आकै अपनी रस्ता सै ना भटकिओ और अपनी मजबूती कै हात सै जान मत देईओ।