तबे तिन्ऐ आप्णे चैले हेरोदियों दल़ के लोगों की गईलो प्रभू यीशू कैई ऐजो बुल्णों खे डियाल़े, के “हे गुरू जी! आँमें जाणोंऐं के तुँऐं साचे असो, अरह् पंणमिश्वर की राज्य की शिक्क्षा पुरी सचाई शी शिखाव, अरह् तुओं दा किऐ भेद्-भाव ने आथी, अरह् तुँऐं कोसी आदमी के जरकावें दे ने आँदे।
परह् तिनू जाँने-माँने लोगो कैई शो मुँह किऐं ने भेटी, से भाँव कैष्णें ही भी थिऐ; मेरे तिंन्दे शो किऐ ने लोंणी थी, बिना कोसी का भेद्-भाव के बादे आदमी पंण्मिश्वर के सहाम्णें ऐक-भाँते असो; ईन्देंखे मुँह तिनू जाँने-माँने लोगो शा मुँखे अरह् मेरी खुषख्बरी खे किऐ फाय्दा ने हई।
हे माँलिको, तुँऐं भे घूर्की देणी छुड़ी दियों; अरह् आप्णें दास आरी आच्छ़ा बर्ताव करह्; किन्देंखे के तुँऐं जाँणों ऐं, के तिनका अरह् तुँवारा दुई का ऐक ही माँलिक असो; जुण्जा के स्वर्गो दा असो, अरह् से कोसी का किऐ भे पक्ष-पात ने करदा।
अरह् जे तुवाँरे ऐक नाँम लोगो के कर्मों के मुताबिक बिना अप्णोंट के नियाँव कर्णो वाल़े पंणमिश्वर खे तुँऐं हे पिता करियों पुकारो, तअ ईयों धर्ती गाशी रंहणों के बख्त भऐ-डर शा आप्णा जीवन बिताव।