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प्रकाशितवाक्य 21:22 - Sirmouri

22 तेसी नंगर दे मुँऐ किऐ भे देऊँठी ने देखी, किन्देंखे के सर्ब-शक्त्तिमाँन प्रभू पंण्मिश्वर अरह् छ़ैल़्टा तेसी नंगर की देऊँठी थी।

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सिरमौरी नौवाँ नियम

22 मोऐं कुणजाई मन्दिर ना दैखी जिथुकै सौबिदा बौड़ा शौकतीशाली पौरमेशवर औरौ मेम्ना तैसी शहर दै औसौ। इथकारिए तिथै मन्दिर कै किछै जौरुरत ना आथी।

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प्रकाशितवाक्य 21:22
25 ပူးပေါင်းရင်းမြစ်များ  

प्रभू यीशू ऐ तिनखे बुलो, “तुँऐं ऐजी देऊँठी की बंणाँवट दे:खी लऐ? हाँव तुओं खे खास बात बुलू, के ऐक देस ईयों देऊँठी का ऐक भे पाथर ओकी पात्त्थरों गाशी थुवा अंदा ने दे:ख्ले किन्देंखे के ऐक नाँम पाथर धह्नियों धर्ती गाशी ढाल़ियो छ़ाँटो-बाटो पड़ा अंदा हला।”


‘हाँव अरह् बाबा ऐक जीऊँ असो।’”


(अरह् जे तेस्के जाँणें पंण्मिश्वर की बड़ियाऐं हंदी) तअ पंण्मिश्वर भे तेस्की बड़याऐ कर्दे; अरह् से शीघी ही तेस्की बड़ियाऐ कर्दे।


प्रभू यीशू ऐ तियों खे बुलो, “ओ तिरंई! मेरी बातो का बिश्वाष करह्, के सेजा बख्त आँदा लागा, जबे तुँऐं लोग ना तअ ईयों धारह् गाशी, ‘पंरम-पिता पंण्मिश्वर के आरार्धना कर्ले; अरह् ना यरूशलेम दी।’


परह् सेजा बख्त आँदा लागा मतल्व आऐ रूआ, जबे साच्चै आरार्धना कर्णो वाल़े भगत्त लोग, आत्त्मा अरह् सच्चाई शी परंम-पिता की आरार्धना कर्ले; किन्देंखे के परंम-पिता पंण्मिश्वर ऐष्णें ही आरार्धना कर्णों वाल़े चहाँव।


किन्देंखे के पिता की खुशी ईन्दी असो, के तिनदी ही बादी भरपुरी बास करह्;


पंण्मिश्वर की बादी भरपुरी जुण्जी के मसीया दा देह्-शरीर दा रूप धारंण करियों सदा बास करह्;


प्रभू पंण्मिश्वर, जुण्जे असो ऐ, अरह् जुण्जे सदा थिऐ, अरह् जुण्जे आँणों वाल़े असो, से सर्वशक्त्तिमाँन, प्रभू पंण्मिश्वर का बचन असो: से “अल्फ़ा, अरह् ओमेगा, हाँव ही असो”


ऐजो बुल्दे लागे: “हे सर्ब-शक्त्तिमाँन प्रभू पंण्मिश्वर, जू असो ऐ, अरह् जू थिया, आँमें तेरा धन्यबाद करह्, के तुँऐं आप्णी बड़ी शक्त्ति काँम-काज़ दी लाऐयों राज करी थो।


से सेजे लोग असो, जुण्जे तिरंई की गईलो हेबी तोड़ी अशुद्ध ने हऐ रंई थी, अरह् से कुँवाँरें असो; से सेजे ही असो, जुण्जे हमेशा छ़ैल़्टे पाछ़ी चालो भाँव छ़ैल़्टा कैथी भे ज़ाँव; तिनू पंण्मिश्वर अरह् छ़ैल़्टे खे बिश्वाष की आगली ही ऊपज का जिया फ़ल़ आदमी मुझ्शे चूणें-छ़ाँटे गुवे।


से पंण्मिश्वर के दास ऋषी-मूसा को गीत्त, अरह् तेसी छ़ैल़्टे को गीत्त गाऐ गाऐयों बुलो थिऐ: “हे सर्ब-शक्त्तिमाँन प्रभू पंण्मिश्वर, तेरे काँम-काज़ बड़ी नंखै असो; हे ज़ूगौ-ज़ूगौ के राजा, तेरी चाल ठीक अरह् साच्ची असो।”


से ऐजी दुष्ट-आत्त्मा असो, जुण्जी चींन-नीशाँणी देखाँदें संईसारी धर्त्ती के बादे राज्य खे सर्ब-शक्त्तिमाँन पंण्मिश्वर के तेसी नियाँव के देसो खे लड़ाई-ज़ूद्ध कर्णो खे कठे करह्।


तबे मुँऐं बैदी पूजों शी ऐजी गूँह्ज शुँणीं: “होर, हे सर्ब-शक्त्तिमाँन प्रभू पंण्मिश्वर, तेरे फऐंस्ले ठीक अरह् साच्चे असो।”


जात्ती-जात्ती मार्णो खे तिनके मुँह ज़ात्ती शी ऐक पुईनी तरवार नींक्ल़ो। से लोहे के मुँगरे लई तिनू गाशी राज कर्दे, अरह् सर्ब-शक्त्तिमाँन पंण्मिश्वर के डराव्णें रोष की सूर के कुँड दे दाख्ह-अंगूरह् घींजला।


चौऊँ जींव के छ: छ: पाखो असो, अरह् चौऊँ ढबे हजो आखी ही आखी असो; अरह् से रात्ती देसो बिना रूकी स्त्तुति-बड़ियाऐ ऐजी करह्: बिषाँव करे; ऐजो ही बुल़्दें रंह्, “पबित्र, पबित्र, पबित्र, प्रभू पंण्मिश्वर, सर्ब-शक्त्तिमाँन, जू थिया, अरह् जू असो ऐ, अरह् जू आँणों वाल़ा असो।”


तबे मुँऐ तेसी सिंगाँस्ण अरह् चारों जींव अरह् तिनू अगुऐ के बीचो दा, जेष्णाँ ऐक काटा अंदा छ़ैल़्टा खड़ा देखा। तेस्के सात्त शिंगों अरह् सात्त आखी थी; ऐजी पंण्मिश्वर की सात्ते आत्त्मा असो, जुण्जी संईसारी की बादी धर्ती गाशी डियाल़ी गई थी।


ईन्देंखे, ऐजे जुण्जें पंण्मिश्वर के सिंगाँस्हणों के सहाँम्णें असो, अरह् तेस्की देऊँठी दी देसो-रात्ती तेस्की सेवा करह्, अरह् जू सिंगाँस्हणों गाशी बऐठी रूवा, से तिनू गाशी आप्णें ताँम्बू की छ़या करला।


किन्देंखे के बीच, के सिंगाँस्हणों गाशी बंईठा अंदा छ़ैल़्टा तिनका चराईया हंदा; से तिनू जीवन के जल के फटवाँणीं तोड़ी नींदा पंण्मिश्वर तिनकी आखी शे बादे आशुओं आगू घुष्दा”।


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