14 दुज़ी बिब्त्ति बिती गऐ; देखो, च़ीज़ी बिब्त्तिी शीघी आँणों वाल़ी असो।
14 दूजै मुसीबत खत्म हौए गौए; पौरौ इथकै बाद बै तिजै मुसीबत तावल़ै आणौवाल़ी औसौ।
तबे मुँऐ स्वर्गो दे ऐक हजो बड़ी नंखी चींन-निशाँणी देखी, मतल्व सात्त स्वर्गदूत्त जिन कैई सात्त आखरी बिब्त्ति थी, किन्देंखे के तिनके खत्त्म हंणों गाशी पंण्मिश्वर के रोष खत्त्म हंदा थिया।
जबे मुँऐ हजो देखो, तअ अस्माँनों के बीच दा, ऐक बाज ऊड़ादे अरह् जुराल़ो ऐजो बुल्दे शुंणों, के “सेजे च़ीन स्वर्गदूत्त जिनको फुकर्णो हेभी हजो असो, धर्ती के रंहणों वाल़े गाशी हाऐ! हाऐ! हाऐ!”
आगली बिबत् तअ बिती गऐ, देखो, ऐबे ईन्दें पाछी दो बिब्त्ति हजो आँणों वाल़ी असो।