“तबे राजा आप्णें डेरे ढबे के लोगों खे टाटी नाँऐयों बुल़्ला, ‘मुँह कैई शे दुर्के ज़ाव, श्रापित्त लोग! हमेशा के नंरक की आगी दे ज़ाव, जुण्जी शैतान अरह् तेस्के दूत्तों खे आगे ही तियार असो।
तिन को शुपौ तिन के हाथो दो असो, से आप्णा खल़ा-खल़्यान सुओं करियों कारोंदे, अरह् गींऊँ तअ कुठारी दे थंह्दे, अरह् भूस तियों आगी दो पाऐ देंदे जुण्जी कद्दी ने हिष्दी।”