से ना तअ भूमि के कंसी काँम आँदी, अरह् ना से खाँणों ज़ुगो रंह्दो; तबे लोग तैथू ऊदो फेरकाँव, जुण्जा कुऐं मेरी बात शुँण्णीं चहाँव, से सुओं करियों काँन लाऐयों शुंणों।”
जिनके काँन हों से शुँणी पाव, के पबित्र-आत्त्मा कलीसियों खे का बुलो। के जुण्जा जींत्ती ज़ाँव, हाँव तैस्खे तेसी जीवन के बड़े डाल़-पेड़ मुँझ्शो जू पंण्मिश्वर के स्वर्गो दा असो, तिन्दें के फल़ खाणों देऊँबा।”