24 “तिनू देसो दे बैजाऐ कष्ट अरह् कल़ेशो पाछी, सुरूज ईनाँरा हंदा, अरह् टिंकी दो ने रंह्दी पियाशो।
24 “दुखो का सौमय बितणौ कै बाद, सुरज औरौ चांद पेयाशो ना दैंदै।
परह् तुँऐं संकनें-च़ौक्क्ष रूऐ, दे:खो, मुँऐ तुँओं खे ऐजी बातो आगे ही बुली थऐ।
परह् प्रभू को देस चुप्पी चोर जिया आँदा, तेसी देसे अस्माँनों दी बैजाऐ बैशुमाँर-बड़ी-बडी गुड़ाको लई अस्माँन लुप्त होंदो, अरह् अस्माँनों के ग्रह्-पीन्ड आगी लई पगल़ी ज़ाँदे, अरह् धर्ती अरह् धर्ती गाष्ली बादी चींजो अरह् काँम-काज़ जल़ी ज़ाँदी।
परह् तुँओं पंण्मिश्वर के तेसी देसो की बाट कैशी दाँई जुहणी पड़ो, अरह् तिनके शिघै आँणों की ताँईऐं कैष्णी कोशिष कर्णी पड़ो। जिन्दे के जाँणें असमाँन आगी लई पगल़ी ज़ाले, अरह् असमाँनों के ग्रह-पीन्ड भभ्कियों तप्पियों गल़ी ज़ाले।
ईन्दें पाछ़ी मुँऐ ऐक बड़ो चींट्टो सिंगाँस्ण अरह् तिन्दें गाशी बऐठा अंदा आदमी देंखा, अरह् धर्ती अरह् अस्माँन तेस्के सहाँम्णें छाँई-माँई हंऐ गुओं अरह् तिन्देंका ऐजा पंता ने लागी के से कैथे गुओ।