19 किन्देंखे के ऐष्णें देसो कठींण हंदे, के शुरू शी पंणमिश्वर ऐ जबे सृस्टी सजाई थऐ, तदी शुभे ना तअ ऐष्णी बातो केथी हऐ रंई, अरह् ना कदी ऐष्णी बातो हजो हंदी।
किन्देखे के तेसी देसे ऐत्रा जादा दु:ख-कल़ेष हंदा; जेष्णाँ ना संईसारी दा ऐतलो तोड़ी कंद्दी हई, अरह् ना कंद्दी हजो हंदा।
परह् संईसारी की रंच्णा के शुरू शो पंणमिश्वर ऐ नंर-नाँरीं करियों बंणाऐ।
अरह् प्रार्थना करिया करह्, के सेजे देसो पूषो-माँगो के भीने ने आओं।
जे प्रभू ईनू देसो ने घटाँदे, तअ कसी के भे पराँण ने बंच़्दीं थी, परह् ईनू छाँटे-चूणें अंदे के कारण जिनू प्रभू ऐ आपु चूँणी-छाँटी थुऐं, ईनके कारण ऐजे देसो घटाऐं गुऐ।
मुँऐ तैस्खे बुलो: “हे श्री माँन, ऐजो तअ तुँऐं जाँणों।” तेने मुँखे बुलो, “ऐजे सेजे असो, जू बड़े कल़ेष मुँझ शे नींक्ल़ियों आऐ रूऐ; ईनू लोगे आप्णे-आप्णे खोट्णों छ़ैल़्टे के लह्ऊँ लई धुईयों चींट्टे बाँणीं थुऐ।