“जुण्जा कुँऐं आदमी के बैटे के बिरूध दे किऐ बात बुलो, तेस्का ऐजा कसूर माँफ करा ज़ाला, परह् जुण्जा कुँऐं पबित्र-आत्त्मा के बिरूध दो किऐ बुल़्ला, तेस्का सेजा कसूर ऐसी ज़ूगौ दा अरह् परलोकं दा भे माँफ ने करा ज़ाँदा।”
खास-चैले ओकी चैले के मंन पाक्कै कर्दें रंह् थिऐ, अरह् तिनखे से बिश्वाष दे बड़्णों खे हिमम्त्त दियों थिऐ; अरह् से बुलो थिऐ, के आँमों भाँव बैजाऐ दुंख्ह-कल़ेष संह्ऐन कर्णें पड़ले; तबे भे आँमें पंण्मिश्वर के राज्य दे जरूर ज़ाँदे।
किन्देंखे के देह्-शरीर के कसरत्त थोड़े देसो खे हों, अरह् ईन्दें लंई किऐ फ़ाय्दा ने हंदा; परह् पंण्मिश्वर की भगत्ति का लाभ सोभी बातो दा जीवन खे हिम्मत्त दियों; ऐसी बख्त्ते अरह् आँणों वाल़े जीवन का बाय्दा भे ईन्दीखे असो।
बिचार करह्, के कैत्रा गऐरा पियार परंम-पिता पंण्मिश्वर आँमों आरी करह्, जिन्दें का कुँऐ भे किऐ पता नें लाऐ पाँदा, खास करियों संईसारी के लोगों कैई पंण्मिश्वर की पछ़याँण ने आथी; ईन्देंखे के से आँमों भे पंछ़याँण्दी ने, के आँमें तिनकी अलाद असो।