“कुँण्जा असो, सेजा बिश्वाष ज़ूगा, अरह् सम्झदार दास-बैठू, जेस कैई घर का मालिक आप्णें कुँड़बे-घरोऊँच़ीं की जूमेबारी दियों; के से बख्तो के मुँताबिक सोभी खे भोजन खाँणों का ईन्तजाँम करह्।
मसीया का बिरोधी आँमों ही मुँझ्शा असो, परह् से सोतिखे अमाँरा साथी ने, किन्देंखे के जे से सोतिखे अमाँरा साथी हंदा, तअ अमाँरी गईलो रंह्दा। परह् तेने आँमों छुड़ी दिते, जू से ऐजो दे:खाऐ सको, के तिन मुँझ्शा कुँऐं भे सोतिखे अमाँरा साथी ने आथी।