परह् जुण्जा मेरी बातो शुणों ऐं, अरह् तिन्दा चाल्दा ने आथी, से तैसी आदमी जैष्णाँ असो, जेने आप्णो घोर बिना पौ-नीव बाँणी काची माटी गाशी बाँणों, जैई दाँणिक छीड़के लागे अरह् बागूर फिरी तैई तैसी घर का किऐ पता ही ने लागी के सैजो घर कैथे थियो, थियो के कैथी थी ने तिन्दें का किऐ नाँम निशाँण ने रंई।”