49 “हाँव धर्ती गाशी आग लाँदा आऐ रूवा, अरह् ऐशो जाँणू के ऐजी आग हेभी भभकोन्दी लागो!
49 “हांव धोरती पांदी आग लांदा आए रौआ; औरौ का चोऊं सिरफ ऐजौ कै ऐजै आग इबी सिलकै जांव।
परह् जेने गंल्त्ती शी माँर खाणों की टअल करी, तअ से ठिकी माँर खाँदा; किन्देंखे के जैस्खे भहितो देऐ थो, तेस कैई शो माँगो भे भहितो ज़ाँदो; अरह् जैस कैई भहितो संभाल़्णों खे देऐ थो, तैस कैई शा लेखा-ज़ुखा भे भहिता लुवा ज़ादा।
मेरे तअ ऐक नहाँण-नहाँणों, अरह् जाँव तोड़ी सेजो नहाँण पुरो ने हुओं; ताँव तोड़ी हाँव बैजाऐ बै-चय्न-बियाकुल असो!
जिन्ऐं मुँह डेयाल़ी थुवा; तिनकी ताँईऐं आँमों खे ऐजो जरूरी असो, के आँमें देसो के सकाल़ै ही तिनके काँम-काज़ करी दियों; किन्देंखे के सेजी रात्त आँणों वाल़ी असो, जबे कुँऐ आदमी किऐ भे काँम-काज़ ने करी सक्दा।