47 हाँव तुँओं खे खास बात बुलू: जुण्जा बिश्वाष करह्; तेसी ही अमर-जीवन भेट्दा।
47 हांव तुऔं खै साचौ-साचौ बुलू, कै जू कुणिए बिशवाश कौरौ, सौदा कै जिन्दगी तैसकै औसौ।
अरह् जुण्जा कुँऐं आदमी जींऊँदा असो, अरह् से मुँह्दा बिश्वाष करह्; से कोदी ने मँर्दी; कियों तू ईयों बातो दा बिश्वाष करे ऐ?”
किऐ ही बख्त्त हजो असो, जबे ऐजी संईसारी मुँह ने देखी सको; परह् तुँऐं मुँह जरूर देख्ले; के हाँव जीऊँदी असो, अरह् तुँऐं भे जीऊँदी रंह्दे।
“किन्देंखे के पंण्मिश्वर ऐं संईसारी शो ऐत्रो प्यार करो, के तिन्ऐं आप्णा ऐक्लोत्ता बैटा देऐ दिता; किन्देंखे के जुण्जा कुँऐं तिनू गाशी बिश्वाष करला; से नाँष ने हों, परह् से अमर-जीवन पाँव।
“जुण्जा कुऐं बैटे गाशी बिश्वाष करह्, से दोषी-कसूरबार ने बंण्दा; परह् जुण्जा कुँऐं बिश्वाष ने करदा, से दोषी-कसूरबार बंणी गुवा; किन्देंखे के से पंण्मिश्वर के ऐक्लोत्ते बैटे के नाँव गाशी बिश्वाष ने करदा।
जुण्जा कुँऐ बैटे गाशी बिश्वाष करला, अमर-जीवन तेस्का असो; परह् जुण्जा कुँऐं बैटे गाशी बिश्वाष कंरदा भाजी ज़ाँव, तेसी अमर-जीवन ने भेंट्दी; परह् पंण्मिश्वर का रोंष तेसी गाशी बंणाँ अंदा रंह्दा।”
हाँव तुँओं खे ऐक खास बात बुलू, के जुण्जा कुँऐं मेरे बचन शुँण्ला, अरह् जिन्ऐं मुँह डेयाल़ी थुवा, तिन गाशी से बिश्वाष करला, तअ सदा का अमर-जीवन तेस्खे भेट्दा, अरह् तेस्खे सजा की अज्ञाँ ने देंईदी, परह् से मऊँत्ती गाशी जीत्त पाँऐयों, अमर-जीवन दा दाखिल हऐ ज़ाँदा।
नाँष बाँन भोजन खे ने, परह् तेसी भोजन खे मेंह्नत्त करह्, जुण्जा सदा खे अमर-जीवन तोड़ी रंह्; जुण्जा जीवन आदमी का बैटा तुओं खे देला, किन्देंखे के बाबा, मतल्व परंम-पिता पंण्मिश्वर ऐं आप्णी ही हिछ़या आरी, सिर्फ तेस्खे ही सेजा हंक-अधिकार देऐ थुवा।”
किन्देंखे के मेरे बाबा के हिछ़या ऐजी असो, के जुण्जा बैटा देखो अरह् तेस्दा बिश्वाष करह्, तेसी अमर-जीवन भेंट्दा; अरह् हाँव तेसी आखरी के देसे हजो जीऊँदा करी देऊँबा।”
हाँव ही स्वर्गो शी ऊदी ऊत्री अंदी रोटी असो, के जुण्जा कुँऐ ईयों रोटी खाँव; से मंरदा ने आथी।
हाँव ही स्वर्गो शी ऊदी ऊत्री अंदी जीवन की रोटी असो; अरह् जुण्जा कुँऐं ऐजी रोटी खाँव; से हमेशा जीऊँदी रंह्दा, अरह् जुण्जी रोटी हाँव देऊँबा, सेजी रोटी संईसारी खे जीवन के ऐक भेंट करी अंदी मेरी देह्-शरीर असो।”
जुण्जा मेरी देह्-शरीर खाँव, अरह् मेरो लह्ऊँ पीयों, अमर-जीवन तेस्का ही असो; अरह् आखरी के देसे हाँव तेसी आदमी ऊबा जीयाल़ूबा।
ऐजी सेजी रोटी असो, जुण्जी स्वर्गो शी ऊँदी ऊत्री रंई; ऐ तेष्णी रोटी ने आथी, जुण्जी तुवाँरे पुराँणिऐं ऐं खाई थी, तबे भे से मंरी गुऐ; परह् जुण्जा कुँऐं ऐजी रोटी खाँव, से कंद्दी भे मंरी ने सक्दा; किन्देंखे के से संदा जीऊँदीं रंह्दा।”