दोषी-कसूरबार का कारण ऐजा असो, के ज्योति-प्रकाष संईसारी दे आऐ; परह् आदमी ऐं तियों ज्योति-प्रकाष प्यारी ने माँनी; अरह् तिन्ऐं ईनाँरो प्यारो माँनों, किन्देंखे के तिनके काँम-काज़ बुरे थिऐ।
तुँऐं मुँदा बिश्वाष किया-किया करी सको, जबे के तुँऐं लोग ओका-ओकी कैई शी आप्णी तारिफ़-बड़ियाऐ शुँण्णों की ताक खोज दे रंह्; परह् तियों तारिफ़ शुँण्णों के कोशिष ने कर्दे जुण्जी सिर्फ पंण्मिश्वर कैई शी ही भेंटी सको।
पबित्र-आत्त्मा अरह् दुल्ह्नं ईनू दुई की ऐजी ही बिनन्त्ति असो; “आओ!” जेने शुँणीं लुओं, से भे बुलो; “आओ!” सेजा जुण्जा च़ींषा असो से भे पीयों, अरह् जुन्जा कुँऐ हिछ़ुक असो, से भे ऐई मु़ँझ़ी दाँण भेट्णों के रूप दो जीवन को जल मुँझ़्शो पीयों।