तुँऐं मुँदा बिश्वाष किया-किया करी सको, जबे के तुँऐं लोग ओका-ओकी कैई शी आप्णी तारिफ़-बड़ियाऐ शुँण्णों की ताक खोज दे रंह्; परह् तियों तारिफ़ शुँण्णों के कोशिष ने कर्दे जुण्जी सिर्फ पंण्मिश्वर कैई शी ही भेंटी सको।
तिनकी आ:खी दे चोरी-जारी ही बसी अंदी हों, से चंचल मंन वाल़े लोग ही बकाँव, से लाल़्च कर्णो के आदी हऐ रूऐ, से पाप कर्णो शे रूकी ने सक्दे, अरह् से फींट्कारे-श्राप के अलाद असो।