तिरंई कलीसिया की सभा दी चुप्पी रंह्, किन्देंखे के तिन्खे बातो लाँणों की अज्ञाँ ने आथी, परह् बष दी रंहणों की अज्ञाँ असो, जेष्णों पबित्र-ग्रन्थों दो लिखों भे थो।
अरह् से झ़ूक्की-शियाँगी अंदी ने हों, से पत्ति-बरत्ता, अरह् आप्णे घरह् की आच्छ़ी काँम-काज़ कर्णो वाल़ी, भली, अरह् आप्णे-आप्णे घरवाल़े के बंष दी रंहणों वाल़ी हों, जू पंण्मिश्वर के बचन की नीदया ने हों।