जुण्जे लोग पंणमिश्वर की सचाऐं आप्णें पाप के जाँणें दबाऐं दियों, तिनू लोगों की बुरे काँम-काज़ गाशी, अरह् अनियाँऐं गाशी पंणमिश्वर का रोष स्वर्गो शा पर्गट हों,
तिनकी आ:खी दे चोरी-जारी ही बसी अंदी हों, से चंचल मंन वाल़े लोग ही बकाँव, से लाल़्च कर्णो के आदी हऐ रूऐ, से पाप कर्णो शे रूकी ने सक्दे, अरह् से फींट्कारे-श्राप के अलाद असो।