13 तबे: संत्त-पतरस के ऐशी धाव शुँणाई पड़ी, के “पतरस! बीऊँज; ईनू माँर, अरह् खा।”
13 औरौ तैसकै ऐक ऐशणी आवाज़ शौणै, “ओए रै पतरस बिज़ मार औरौ खा।”
तेसी बख्त्ते संत्त-पतरस के भूख लागी, अरह् से किऐ खाँणों चहाँव थिऐ; तबे सेबक लोग भोजन तैयार कर्दे लागे, परह् तेतिऐखे संत्त-पतरस आत्त्मा दे बै-सुद्ध हऐ गुऐ।
तियों चादरी दे साँत्त-भाँत्ते चौपाऐ बंऐच़ी धर्त्ती गाशी, अरह् लूह्कणों वाल़े जीव-जन्तु अरह् अस्माँनों के पक्षी थिऐ।
परह् संत्त-पतरस ऐ बुलो, “प्रभू! बिलकुल ने! मुँऐ कद्दी भे किऐ अ-शुद्ध गाँन्दी चींज ने खाऐ थई!”