3 ऐचे उपर कई शास्त्रीया ने सोचले, “हा तां नरीकारा ची निन्दा करे पला।”
ऐचे उपर महायाजक ने आपणी ओढ़णी फाड़ली ते केहले, “ऐणे नरीकारा ची निन्दा करली, हमा अम्हानु ग़वाह ची का जरुरत? ङेखा, तम्ही हमा हा निन्दा सुणली।
कांकि ओ वांचे शास्त्रीया आलीकर ना पर अधिकारीया आलीकर वानु उपदेश ङिता।
तम्ही निन्दा सुणली। तम्ची का राये छै?” वां सब ने केहले कि हा मरणे चे लायक छै।
“मैं तम्हानु सच्च किहे पला कि, इन्साना ची ऊलाद्धी चे सारे पाप ते निन्दा जको करे, माफ करती ङिले जाये,
पर जको कुई पवित्र आत्मा चे विरोध मां निन्दा करे, ऊं कङी वी माफ नी करले जई, बल्कि ओ अनन्त पाप चा अपराधी हुती जई।”
कांकि भीतर कनु, यानि इन्साना चे मना कनु, बुरे-बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परअसतरी गमन,
तब शास्त्री ते फरीसी विवाद करु लाग़ले, “हा कूण छै, जको नरीकारा ची निन्दा करे पला? नरीकारा नु छोड़ती कर नेरे कूण पाप माफ कर सग़े?”