19 तब हेक शास्त्रीया ने ओचे गोढु आती कर ओनु केहले, “हे गुरु, जिठे-किठी तु जाये, मैं दुधे भांसु टुरती पड़ी।”
यूं करती तम्चे महु जको कुई आपणे सारे कोच्छ छोड़ती ना ङियो, तां ओह माया चैला ना हो सग़ी।
किठे रेहला ज्ञानवान? किठे रेहला शास्त्री? किठे रेहला ऐ संसारा चा विवाद करने आला? का नरीकारा चे सामणे संसारा चा सारा ज्ञान मूर्खता कोनी छै?
पर हो सग़े कि तम्चे इठे ही रुकती जाये ते सर्दी चा मौसम तम्चे इठी कटती गिहे, तब जिठे माये जाणे हो, ऊंगी तम्ही माई सहायता करती ङिजा।