वांचीया आंखीया मां व्यभिचार बसला आला छै ते पाप करले बगैर आलीकर ना सग़ी वे चंचल मना आला नु बकाती गिही वांचे मना नु लोभ करने ची आदत हुली भिली वे श्राप ची ऊलाद्ध छी।
कांकि जको कुई संसारा मां छै, यानिकि शरीरा ची इच्छा ते आंखीया लारे ङेखती कर ओनु पाणे ची मना मां इच्छा ते जीविका चे घमण्ड, ओ ब़ा नरीकारा ची ओर कनु कोनी पर संसार ची ओर कनु छै।