“हे ब़ा, मैं चाहवे कि जानु तु मनु ङिले जिठे मैं छै ओठे वे वी माये लारे हो, कि वे माई वा महिमा ङेखो, जको तु मनु ङिली कांकि तु संसारा ची उत्पत्ति चे पेहले माये लारे प्रेम राखला।
ते ऐ संसारा ची रीति उपर ना चला। पर तम्ची ब़ुध्दि चे नवें हुती जाणे लारे तम्चा चाल-चलन वी बदलता जाओ, जाये कनु तम्ही नरीकारा ची भली, ते भावणे आली, ते सेद्ध इच्छा लारे अनुभव लारे मालुम करते रिहा।