43 हेक असतरी हुती जानु ब़ारहा साला कनु लुहीं बेहणे ची बिमारी हुती, ते जको आपणी सारी कमाई वैदा चे भांसु खर्च करती चुकली हुती, तां वी काये हाथा कनु ठीक कोनी हो सग़ली हुती।
जिठे-किठी वा ओनु पकड़ती गिहे, उठी ढाती ङिये, ते ऊं मुँहा महु झग़ बाहती पड़े, ते ङांत पीसे, ते सूकते जाये। मैं दुधे चैला कनु बिनती करली कि वे विनु काढ़ती ङियो, पर वे काढ़ ना सग़ले।”
ते ङेखा, हेक असतरी हुती, जानु अठारा साला कनु हेक कमजोर करने आली दुष्टात्मा समाली आली हुती, ते वा कुब़्ब़ी हुती गेलती, ते किसे वी तरीके लारे सिधी ना हो सग़ेली।