23 ते लौक तम्हानु किही, ‘ङेखा, ओठे छै!’ जा, ‘ङेखा, इठे छै!’ पर तम्ही चाह्ले ना जजा ते ना वांचे भांसु हुजा।
ते लौक ईं नी किही, ‘ङेखा, इठे छै!’ जा, ‘उठे छै!’ कांकि नरीकारा चा राज़ तम्चे बीच मां छै।”
ओणे केहले, “चौकस रिहा, कुई तम्हानु भरमा ना सग़ो, कांकि ब़ोहत से माये नांवा लारे आती कर किहे, ‘मैं ओही छै,’ ते ईं वी कि, ‘समय गोढु आती पुज़ला!’ तम्ही वांचे भांसु ना चाह्ले जजा।