15 ईं सुणती कर प्रभु ने केहले, “हे कप्पटीऊं, का सब्त चे ङिओ तम्चे महु हर हेक आपणे ङान्द जा गाहड़े नु खूंटे कनु खोलती कर पाणी पिलावणे वास्ते गेहती ना जई?
“हे कप्पटी शास्त्री ते फरीसी, तम्चे उपर हाय! तम्ही इन्साना वास्ते स्वर्ग़ चे राज़ चे दरवाजे बन्द करती नाखा, ना तां आप ही ओचे मां जावा, ते ना ओचे मां जाणे आला नु जऊं ङिया।
जब तु आपणी ही आंखी चा खम्बा ना ङेखी, तां आपणे भावां नु किवें केह सग़ी, ‘हे भऊ, रुकती जा मैं दुधी आंखी महु कख काढ़ती ङिये’? हे कप्पटी, पेहले आपणी आंखी महु खम्बा काढ़, तब जको कख दुधे भावां ची आंखी मां छै, ओनु आच्छी तरह ङेखती कर काढ़ सग़े।