“हाय खुराजीन! हाय बैतसैदा! जको सामर्थ चे काम तम्चे मां करले गेले, अगर वे सूर ते सैदा मां करले जईया, तां उठले लौक टाट ओढ़ती कर, ते कैरी मां ब़ेसती कर वे कङकणे मन फिराती गिहा।
ते ऊं इन्सान जाया शरीरिक रूपा कनु बिना खतने चे रेहले, अगर ऊं व्यवस्था नु पुरी करे, तां का तनु जको लिखली आली व्यवस्था मिड़ली ते खतना करले जाणे उपर वी व्यवस्था नु ना मनी, का दोषी नी ठहरावी?