पर जको कुई ओ पाणीया महु पिही जको मैं ओनु ङिही ओह बल्ति कङी तरसेला नी रिही। पर जको पाणी मैं ओनु ङिही ओचे महु हेक स्रोत बणती जई जको अनन्त जीवन तक उमड़ता रिही।”
पर शरीरिक इन्सान नरीकारा ची आत्मा ची बाता स्वीकार ना करी, कांकि वे ओची नजरी मां बेवकूफी चा बाता छी, ते ना ओ वानु जाण सग़े कांकि वांची परख आत्मिक रीति लारे हुवे।
बल्ति ओ स्वर्ग़दूता ने मनु बिल्लौर जिसड़ी शीशे आलीकर झलकती हुली, जीवन चे पाणीया ची नदी ङिखाणली। जको नरीकार ते मैमणे चे सिंहासन कनु निकलती कर ओ शहरा ची सड़के चे आधी मां बेहती।
ते पवित्र आत्मा, ते बीन्दणी ङोनी किही, “आ!” ते सुणने आला वी किहो कि, “आ!” जको तरसेला आला हो, ओ वी आओ। ते जको कुई चाहवे ऊं वी जीवन चे पाणी नु यूंही गिहो।
कांकि मैमणे जको सिंहासना चे आधे मां छै वांची ङेखभाल करी, ते जीवन रूपी पाणीया चे सौत्ते चे गोढु गेहती गेले करी, ते नरीकार वांचीया आँखीया महु सारी हींजवे लूहती नाखी।”