अम्ही ईं सुणले कि, अम्चे महु कई जणा ने ओठे जती कर, तम्हानु आपणीया बाता लारे घब़राती नाखले, ते तम्चे मन बैचेन करती नाखले पर अम्ही वानु हा आज्ञा कोनी ङिली हुती।
मैं हा विनती करे पला कि, तम्चे सामणे मनु बेधड़क हुती कर हिम्मत ना करनी पड़ो, जिसड़े मैं कितना उपर जको अम्हानु संसारिक रीति चे अनुसार चलणे आले समझी, मनु कठोरता ङिखाणने चा विचार आवे पला।
ऐह वजह कनु दूर हुते हुले वी मैं तम्हानु ईं सब लिखे पला, कि ओठे मौजुद हुवणे उपर मनु प्रभु चे जरिये ङिला गेला अधिकार चा प्रयोग कठोर भाव लारे ना करना पड़ो। ऐ अधिकार चा मकसद बढोतरी करनी छै, ना कि नाश करने कोनी।
ते मैं हा बात तम्हानु ऐवास्ते लिखली हुती, कि कङी इसड़े ना हो, कि माये आवणे उपर, जाये कनु खुशी मिलणी चाही छै, मैं वांचे कनु उदास हुवे। कांकि मनु तम्चे सारा उपर ये बाते चा भरोसा छै कि, जको माई खुशी छै, वा तम्चे सारा ची वी हो।
वे मूसा चे व्यवस्था उपर चलाणे आले लौक अम्चे सज़्ज़ण तां बणने चाहवी, पर आच्छे मकसद लारे कोनी वे तम्हानु माये कनु अलग़ करने चाहवी, कि वानु ही तम्ही आपणा सज़्ज़ण बणाती गिहा।
सो अम्चे महु जितने आत्मिकता ची समझ मां मजबूत हुती चुकले, हाओ विचार राखो, ते अगर कुई बाते मां तम्चे आपस मां विचार ना मिलते हो तां नरीकार ओ वी तम्चे उपर उजागर करती ङी।