जिंवे ङिहां मां अम्ही रिहुं वी, यूंही अम्हानु सिधी चाल चलणी चाही छै, ना कि लीलाक्रीड़ा, ते पियक्कड़पन, ना व्यभिचार, ते लोचपण मां, ते ना ही झग़ड़े ते ईर्ष्या मां लाग़ले रिहा।
कांकि मनु ङर छै कि, कङी इसड़े ना हो कि, मैं आती कर जिसड़े चाहवे, उसड़े तम्ही ना लाभा, ते मनु वी जिसड़े तम्ही ना चाहवा उसड़े ही ङेखा कि, तम्चे मां झग़ड़ा, डाह, गुस्सा, विरोध, ईर्ष्या, चुग़ली, अंहकार ते व्यवस्था ठीक ना हो।
मैं तां पेहले निन्दा करने आला, ते सतावणे आला, ते अन्धेर करने आला हुता, तां वी माये उपर दया हुली, कांकि मैं अविश्वास ची दशा मां बिना सोचले समझले, ये कामे करली हुती।
ये वजह कनु जबकि ग़वाहा ची इसड़ी बङी भीड़ अम्हानु घेरले आले छै, तां आवा, हर हेक रोकणे आली चीज ते उलझाणे आले पापा नु दूर करती कर, वा द्रोड़ जिसे मां अम्हानु द्रोड़ने छै, धीरज लारे उग़ते बधते जऊं,
ठीक यूंही कोच्छ लौक तम्चे मां घिरती आले ते वे गन्दे खाब पुरे करने वास्ते आपणे शरीरा नु अशुद्ध करी, ते प्रभु ची सामर्थ नु तोच्छ जाणी, ते ऊंचे ओहदे आला नु बुरे-भले किही।