“ऐवास्ते मैं तम्हानु किहे पला कि आपणे प्राणा ची हा चिन्ता ना करा कि अम्ही का खऊं ते का पीऊं, ते ना आपणे शरीरा ची कि अम्ही का घालु। का प्राण रोटी कनु, ते शरीर ओढ़णा कनु बढ़ती कर कोनी?
ये वजह कनु जबकि ग़वाहा ची इसड़ी बङी भीड़ अम्हानु घेरले आले छै, तां आवा, हर हेक रोकणे आली चीज ते उलझाणे आले पापा नु दूर करती कर, वा द्रोड़ जिसे मां अम्हानु द्रोड़ने छै, धीरज लारे उग़ते बधते जऊं,