“हे कप्पटी शास्त्री ते फरीसी, तम्चे उपर हाय! तम्ही इन्साना वास्ते स्वर्ग़ चे राज़ चे दरवाजे बन्द करती नाखा, ना तां आप ही ओचे मां जावा, ते ना ओचे मां जाणे आला नु जऊं ङिया।
तम्ही आपणे ब़ा शैताना ची ऊलाद्ध छिवा, ते आपणे ब़ा ची इच्छा नु पुरी करने चाहवा। ओ तां शुरु कनु हत्यारा छै, ते सच्च उपर कोनी रुकला, कांकि सच्च ओचे मां छै ही कोनी। जिसे बेले ओ कूड़ मारे, तां आपणे सुभाव लारे ही कूड़ मारे, कांकि ओ कूड़ा छै, बल्कि कूड़ा चा ब़ा छै।
अम्ही इसड़ी ब़ाले बणली ना रिहुं कि हवाई लारे उछलती ना जऊं बन्दी जको ठग़्ग़ विधिया नु बधावी, भ्रम चे लारे भरले आले व्यवहार कनु, ते इसड़े ढोंगीपणे कनु इंगे-ऊंगे भटकाती ङी