2 मैं हा विनती करे पला कि, तम्चे सामणे मनु बेधड़क हुती कर हिम्मत ना करनी पड़ो, जिसड़े मैं कितना उपर जको अम्हानु संसारिक रीति चे अनुसार चलणे आले समझी, मनु कठोरता ङिखाणने चा विचार आवे पला।
ऐवास्ते मैं जको इच्छा करली हुती तां का मैं चंचलता ङिखाणली? जा जको करने चाहवे कि ऊं शरीरा चे अनुसार करने चाहवे, कि मैं बाते मां “हां, हां” ते “ना, ना” वी करे?
मनु खौद्द शर्मसार हुती कर केहणे पड़ले मनती गिहा कि अम्ही ब़ोहत कमजोर जा हुते। पर जिसी बाते मां कुई हिम्मत ङिखाणे, मैं वी मूर्खता लारे किहे पला कि मैं वी हिम्मत ङिखाणे।
ऐह वजह कनु दूर हुते हुले वी मैं तम्हानु ईं सब लिखे पला, कि ओठे मौजुद हुवणे उपर मनु प्रभु चे जरिये ङिला गेला अधिकार चा प्रयोग कठोर भाव लारे ना करना पड़ो। ऐ अधिकार चा मकसद बढोतरी करनी छै, ना कि नाश करने कोनी।